दोनों किडनियों का खराब होने से क्या मतलब है?
बीमारी कोई भी हो इसका एक ही मतलब होता है रोगी पर मुसीबतों
का पहाड़ टूटना है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति को किडनी फेल्योर हो जाए तो इसका मतलब
है कि उसकी जान को खतरा है। किडनी हमारे शरीर का सबसे अभिन्न अंग है, यह हमारे
शरीर में बहाने वाले खून को साफ करने का कराय करती है। खून साफ करने के दौरान
किडनी उसमे मौजूद सारे अपशिष्ट उत्पादों को पेशाब के जरिये शरीर से बाहर निकाल
देती है। एक मनुष्य के शरीर में बहने वाले खून में में सोडियम, पोटेशियम, यूरिक एसिड, यूरिया, अतिरिक्त शर्करा जैसे अपशिष्ट
उत्पाद होते हैं, जिनकी अधिक शरीर में
अतिरिक्त मात्रा होने के कारण किडनी खराब हो जाती है। किडनी खराब होने के कारण
व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उचित उपचार ना मिलने के कारण किडनी रोगी की जान तक भी जा सकती है। एक बार
किडनी खराब होने पर उसे पुनः स्वस्थ करना बहुत ही मुश्किल होता है।
किडनी खराब होने पर क्या होता है?
किडनी खराब होने पर पीड़ित व्यक्ति को कई समस्याओं का
सामना करना पड़ता है। किडनी रोगी को कई ऐसी शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है
जिसके कारण उनकी किडनी पर और अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे निपट पाना बहुत
ही मुश्किल होता है। किडनी खराब होने पर पीड़ित का रक्तचाप काफी बढ़ जाता है,
रासायनिक असंतुलन होने के कारण अनिद्रा की समस्या हो जाती है।किडनी के ठीक से काम
ना करने के कारण शरीर में यूरिक अम्ल की मात्रा बढ़ने लग जाती है, परिणामस्वरुप व्यक्ति
के शरीर में सूजन आने लगती है। शरीर में सूजन आने के कारण व्यक्ति को कई दिक्कतों
का खासा सामना करना पड़ता है।
किडनी खराब होने पर रोगी को पेशाब से जुडी हुई भी कई
समस्याएँ भी हो जाती है। इस दौरान शरीर में पानी की कमी होने लगती है, और पेशाब कम बन पाता
है। पेशाब कम बनने के कारण किडनी की सफाई नहीं हो पाती। इस दौरान किडनी के
फिल्टर्स क्षतिग्रस्त हो जाते हैं जिसके चलते पेशाब के साथ प्रोटीन भी शरीर से
बाहर आने लगता है, जिसे प्रोटीनलोस के नाम से भी जाना जाता है। शरीर में अपशिष्ट उत्पादों की
मात्रा बढ़ने के कारण व्यक्ति को बार-बार उल्टियाँ आने लगती है, इस दौरान रोगी को भूख
भी बिलकुल नहीं नहीं जिससे रोगी काफी कमजोर हो जाते है। वहीं शरीर में अपशिष्ट
अत्पदों की संख्या बढ़ने के कारण रोगी को सांस लेने में भी दिक्कत होने लगती है।
किडनी फेल्योर, रोगी के निजी जीवन को कैसे प्रभावित
करता है?
जब किसी व्यक्ति की किडनी खराब होती है तो उसकी निजी
जिन्दगी पर काफी असर पड़ता है। किडनी खराब होने पर रोगी की मनोस्थिति में काफी
बदलाव देखने को मिलता है। क्योंकि उस दौरान रोगी को आने वाली बूरी स्थितियों का
आभास होने लगता है। रोगी अपने आप कही पर आने-जाने और दिनचर्या के कार्य करने में भी
सक्षम नहीं होता। रोगी को अपने हर छोटे से बड़े कार्य के लिए दुसरे व्यक्ति पर
आश्रित रहना पड़ता है, जो कहीं न कहीं उसकी मानसिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
इस दौरान किडनी रोगी पर आर्थिक तौर पर भी निजी
जिन्दगी प्रभावित होती है। किडनी खराब होने का अर्थ है जेब का खाली होना, यदि व्यक्ति एलोपैथी
उपचार का सहारा ले तो। किडनी खराब होने की खबर पाते ही रोगी जल्द से जल्द ठीक होने
की कोशिश करता है इसके लिए रोगी एलोपैथी उपचार का चयन करता है। एलोपैथी में किडनी
का उपचार मौजूद नहीं है, इस उपचार पद्दति में केवल डायलिसिस द्वारा खराब किडनी को ठीक करने की कोशिश की
जाती है। डायलिसिस काफी महंगा उपचार है। इसके अलावा एलोपैथी उपचार में केमिकल
युक्त काफी महंगी दवाओं का सेवन भी किया जाता है।
डायलिसिस से जूझना पड़ता
है किडनी रोगी को:-
जब कोई किडनी रोगी एलोपैथी द्वारा किडनी को ठीक करने
का चयन करता है तो उसके सामने दो विकल्प होते हैं पहला है “कृत्रिम रूप से रक्त
शोधन यानि डायलिसिस” और दूसरा है “किडनी प्रत्यारोपण”। किडनी की विफलता से जूझ रहे रोगी के लिए यह दोनों ही उपचार बहुत जटिल और
दुखदाई होते हैं। अगर रोगी डायलिसिस का चयन करता है उसे अंतिम किडनी प्रत्यारोपण
करवाना ही पड़ता है। एक बार डायलिसिस शुरू होने के बाद रोगी को ताउम्र उसी के सहारे
रहना पड़ता है। डायलिसिस रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि है जिसमे रोगी के रक्त को
शुद्ध करने की नाकाम कोशिश की जाती है। डायलिसिस के दौरान डायलिसिस मशीन रोगी के
शरीर से अपशिष्ट उत्पादों को बाहर निकाल देती है।
लेकिन जब डायलिसिस होता है तो डायलिसिस मशीन खराब
तत्वों के साथ-साथ विटामिन्स और अन्य पोषक तत्वों को भी शरीर से बाहर निकाल देती
है। जिसके कारण रोगी को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं। जिन लोगो का बार-बार
डायलिसिस होता है उनकी सोचने समझने की ताक़त तक चली जाती है, वो अपने आप कुछ भी बोलने लगता है,
बाल उड़ने लगते हैं और भी बहुत कुछ दिक्कते आने लगती हैं। डायलिसिस एक मशीन की
मदद से किया जाता है, ऐसे में मशीन पोषक
तत्वों और अपशिष्ट उत्पादों में फर्क नहीं जानती और वह अपशिष्ट उत्पादों के
साथ-साथ पोषक तत्वों को भी बाहर निकाल देती है।
लंबे समय तक डायलिसिस के बाद एक समय ऐसा आता है जब
रोगी को इस उपचार से भी कोई राहत नहीं मिलती। उस दौरान चिकित्सक रोगी को किडनी
प्रत्यारोपण कराने की सलाह देते है। किडनी प्रत्यारोपण के लिए रोगी के सामने सबसे
बड़ी चुनौती होती है किडनी दानदाता को खोजना। मनुष्य एक किडनी के सहारे से एक
स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकता है। लेकिन देखा गया है की किडनी प्रत्यारोपण के बाद भी
रोगी को कुछ समय बात किडनी की समस्या फिर से होना शुरू हो जाती है। साथ ही एलोपैथी
उपचार बहुत खर्चीला होता है। यह रोगी पर तो नकारात्मक प्रभाव डालता ही है साथ ही
रोगी के परिवार पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। एलोपैथी द्वारा किडनी को पुनः
स्वस्थ करना बहुत मुश्किल है।
आयुर्वेदिक उपचार से ही
मिलेगी राहत:-
एलोपैथी द्वारा किया गया उपचार पानी के बुलबुले की
भांति क्षणभंगुर होता है। आयुर्वेदिक उपचार ही एकलौता ऐसा उपचार है जिससे हर बीमारी
को जड़ से खत्म किया जा सकता है। आयुर्वेद में हर बीमारी का सफल उपचार मौजूद है।
अगर आप किडन की विफलता से जूझ रहें हैं तो आपको एलोपैथी की बजाए आयुर्वेदिक उपचार
का रूख करना चाहिए। आयुर्वेदिक उपचार लेने वाले किडनी रोगी को डायलिसिस और किडनी
ट्रांसप्लांट से नहीं गुजरना पड़ता। बल्कि उन्हें कुछ आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से
ही किडनी को पुनः स्वस्थ किया जाता है।
कर्मा आयुर्वेद में प्राचीन भारतीय आयुर्वेद की मदद
से किडनी फेल्योर का इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेद की स्थापना 1937 में धवन
परिवार द्वारा की गयी थी। कर्मा आयुर्वेदा में केवल आयुर्वेद द्वारा ही किडनी रोगी
के रोग का निवारण किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा काफी लंबे समय से किडनी की बीमारी
से लोगो को मुक्त करता आ रहा है।
कर्मा आयुर्वेदा सिर्फ आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से
किडनी फेल्योर का सफल उपचार कर रहा है। वर्तमान में इसकी बागडौर डॉ. पुनीत धवन
संभाल रहे हैं। डॉ. पुनीत धवन ने केवल
भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज
आयुर्वेद द्वारा किया है। साथ ही आपको बता दें कि डॉ. पुनीत धवन ने 35 हजार से भी
ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या किडनी
ट्रांसप्लांट के बिना।
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