वरुण के कण-कण में है औषधि


हमारे आसपास बहुत से वृक्ष मौजूद है। वृक्षों का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। इनके बिना संसार में जीवन चक्र चलना मुमकिन ही नहीं है। हर वृक्ष हमें छाया और साफ़ हवा देते है। उसी के साथ हर वृक्ष में अपना-अपना एक खास औषधिक गुण भी मौजूद है, जो हमारे लिए उपयोगी है। वृक्ष हमें न केवल छाया देते है बल्कि हमे कई बीमारियों से भी बचाते है। वरुण वृक्ष भी एक ऐसा ही वृक्ष है जिसके अंदर बहुत से औषधिक गुण पाए जाते है। वरुण वृक्ष हमें कई जानलेवा बीमारियों से बचा कर रखता है। इसके औषधिक गुणों के कारण ही यह वृक्ष खुद को दूसरे वृक्षों से अलग बनता है। 
वरुण का परिचय :-
वरुण वृक्ष कहीं भी अपने आप ही उग जाता है, फ़िलहाल इसके गुणों को देखते हुए इसकी खेती भी की जाने लगी है। यह विशेषकर उत्तराखंड, बिहार (विशेषकर नेपाल सीमा), हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बंगाल, आसाम, मलाबार, कर्नाटक, महारष्ट्र, केरल, आदि क्षेत्रों में पाया जाता है। इन इलाकों में यह खुद-ब-खुद ही उग जाता है, यहाँ पर इनकी खेती नहीं की जाती। दक्षिण में जलीय स्थानों में अधिक मात्रा में होते है। वरुण वृक्ष के हर भाषा में अलग नाम है इसे संस्कृत में वरुण, सेतुवृक्ष, तिक्तशाक, कुमारक, मारुतापह, शिखिमण्डल, साधुवृक्ष, गन्धवृक्ष, श्वेतपुष्प; हिन्दी - बरुन, बरना; उर्दू - बर्ना; उड़िया - बोर्यनो; कन्नड़ - नरूम्बेला, नारूवे; गुजराती - बरणो, कागडाकेरी; तमिल-मरलिङ्गम, मरीलिंगा और अंगेजी में टेम्पल प्लान्ट के नाम से जाना जाता है।
वन्य जीवन में इस वृक्ष का विशेष महत्व है। आदिवासी लोग व कई ग्रामीण इलाकों में इस वृक्ष का एक विशेष महत्व है। वसंत ऋतु के दौरान इसमें नए पत्ते आते है। जिनका आदिवासी लोग साग (सब्जी) बना कर सेवन करते है। जिसके चलते वह साल भर खुद को कई बीमारियों से दूर रखते है। हाँ खाने में यह जरा भी स्वादिष्ट नहीं है। यह स्वाद में कसेला होता है, लेकिन उबालने पर इसका पानी अलग कर इसकी सब्जी बनाई जाती है।
वरुण वृक्ष का उल्लेख चरकसंहिता में नहीं किया गया है। लेकिन इसका प्रथम उल्लेख  सुश्रुत में, वरुणादिगण में, अश्मरी और मूत्रकृच्छ्र की चिकित्सा के अन्तर्गत मिलता है। जिसमे वरुण के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी है। इसके अलावा वृन्द माधव ने वरुण का अश्मरीघ्न-कर्म में उल्लेख किया है। अक्सर बाज़ारों में देखा गया है की वरुण की छाल और पत्तों की बिक्री करते हुए दुकानदार (पंसारी)  इसके स्थान पर बेल पत्र के पत्ते और उसकी छाल या आलसी आदि वृक्ष की छाल और पत्तों को बेच देते है। इसीलिए इसे पंसारी से लेते समय इसकी पहचान जरूर करनी चाहिए। वरुण की सबसे बड़ी पहचान है इसकी गंध। यदि आप वरुण के पत्तों और इसकी छाल को रगड़ें तो इसमें से बहुत तेज़ असहनीय गन्ध आती है तथा स्वाद में कड़वापन, जीभ में कुछ झनझनाहट पैदा करने वाली तीक्ष्णता होती है।
किडनी रोग में वरुण के लाभ :-
वैसे तो वरुण हमें कई बीमारियों से बचा कर रखता है। लेकिन इसका विशेष प्रयोग किडनी की बीमारी में किया जाता है। किडनी रोगी के लिए वरुण अत्यंत लाभकारी है। इसके सेवन से हमें किडनी से जुडी कई बीमारी से छुटकारा तो मिलता ही है साथ ही हमें भविष्य में किडनी संबंधित रोग होने के संभावना एक दम ख़त्म हो जाती है। यह वृक्ष किसी संजीवनी की भांति है। यह हमें पथरी, मधुमेह, और रक्त विकार जैसी बीमारियों से बचा कर रखता है।
रक्त शोधन - हमारे शरीर में किडनी का विशेष कार्य रक्त को साफ़ रखना होता है। किडनी हमारे शरीर में प्रवाह होने वाले रक्त का निरंतर शोधन करती है जो हमारे शरीर के लिए बहुत जरुरी है। लेकिन किडनी ख़राब होने की स्थिति में वह यह कार्य करने में सक्षम नहीं होती।  ऐसे में रोजाना आप वरुण वृक्ष की 3 ग्राम पत्तिओं को पीस कर उसका शर्बत के रूप सेवन करे । इसके नियमित सेवन आपका रक्त साफ़ रहेगा। साथ ही रक्त शोधन ना होने के कारण होने वाली खाज-खुजली से भी मुक्ति मिलती है।
मधुमेह - मधुमेह जीवन भर साथ रहने वाली एक जानलेवा बीमारी है। यदि इस बीमारी पर काबू ना पाया जाए तो आपकी किडनी ख़राब हो सकती है। वरुण वृक्ष की छाल मधुमेह को कम करने में बहुत ही लाभदायक है। वरुण की छाल का काढ़ा बना कर सेवन करने से मधुमेह धीरे-धीरे कम हो जाता है। व इसके नियमित रूप से मधुमेह जड़ से ख़त्म भी हो सकता है। आप इसकी छाल से बने काढ़े का प्रयोग मधुमेह की किसी भी अन्य दवाओं के साथ कर सकते है। लेकिन दवा और काढ़े के बीच आधे घंटे का अंतराल जरूर रखे।
पथरी - किडनी में पथरी होना बहुत पीड़ा दायक है। किडनी में पथरी के होने से हमारी किडनी ख़राब भी हो सकती है। किडनी से पथरी को बाहर निकालने के लिए हमें ऑप्रेशन का सहारा लेना पड़ता है। लेकिन वरुण के फूल और पत्तों से बने पाउडर के सेवन से हम बिना ऑपरेशन कराए पथरी को खत्म कर सकते है। इसके लिए आपको चाहिए की आप वरुण के फूल और पत्तों को सूखा उसका पाउडर बना ले। रोजाना सुबह-शाम उसकी चाय बनाकर पिए। इससे किडनी में होने वाली पथरी की समस्या से छुटकारा मिलता है। साथ ही त्वचा और गले की समस्या से भी निदान मिलता है।
मूत्र रोग - जिन लोगों के मूत्र में जलन होती है, पीले रंग का मोत्र रुक-रुककर आता है। ऐसे रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम वरुण की जड का काढा सेवन कराने से 20 दिन में ही मूत्र रोग दूर हो जाते हैं। मूत्र की जलन खत्म हो जाती है। मूत्र खुलकर आता है और मूत्र का पीलापन भी दूर हो जाता है।
अन्य निदान - वरुण वृक्ष किडनी से जुडी अन्य समस्याओं से भी निदान दिलाता है। वरुण की पत्तियां, छाल और फूल तीनो ही उपयोगी है। इसकी मोती छाल किडनी से जुडी हर समस्या के लिए रामबाण औषधि है। प्रारंभिक अवस्था में किडनी फेल्योर के दौरान जिन लोगो का SERCUM, CATENIN, और BLOOD UREA बढ़ जाता है उनके लिए वरुण की छाल का काढ़ा अमृत के समान है।



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